भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शहादत / पूजानन्द नेमा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:09, 11 दिसम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पूजानन्द नेमा |संग्रह=चुप्पी की आ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह दुल्हन है
जिसके माथे पर सिंदूर लगा
और वह आज़ादी है
जिस के माथे पर खून की लाली चढ़ी ।

किसने कहा
कि आज़ादी हमारी
बर्फ की परतों में मिली
जिस के आगोश में गरमी नहीं
युद्ध नहीं-क्रांति नहीं
लहू की एक बूँद नहीं?

रूहों का इंकलाब
पसीनों का संघर्ष
और हजामत बने इतिहास के पन्ने
किसने कह दिया
कि सब कब्रों में ठंडे पड़ गए
और बुलंद रही-आगे भी रहेगी
बस नेताओं की यादें
और तस्वीरें उनकी?

सैंतालिस से पूर्व
उन्नीस सौ एक से भी पहले
दम तोड़ती बंद आवाज़
जिन हृदयों में उठी
उन की मज़बूरियों की
अथाह तृष्णा की
-यह स्वतंत्रता
और ये स्वतंत्र श्वास
किस ने कह दिया
कि गुलामी ने
मात्र पसीने बहाए?

चुप्पी लिए
मेहनत का हर कतरा
आज़ादी की लाली भरा
रक्त का दरिया था
संघर्ष का सैलाब था ।

एडन से मिडिल ईस्ट की सेना
संगीन ताने बरतानी सैनिक
और दो-दो हेलिकॉप्टर
किसने कह दिया
मधुबन में सेगा देखने आए थे ?

बतकही से दूर
फसानों के नीचे
जड़ लगी थी आंदोलन की
बारात-ए-जमात की ।

पैंसठ-अड़सठ का गृह-युद्ध
जन-मानस का संघर्ष था
विचारों का असंतुलन था
या राजनैतिक असंतोष
कुछ भी था
-जाग पड़ा सर्वहारा था
-स्वतंत्रता का नारा था
-खून का गहरा रंग था ।

अड़सठ की बारह मार्च से पहले
इतिहास से ओझल कितने साल
फहरा चुके हैं
खून की लाली
कोड़ों से पड़े नीलों की नीलिमा
तिजोरी में गलते सोने का पीलापन
और पसीने से तर खेतों की हरियाली
एक असली चौरंगा ।

न कभी भूले हैं
न भुलाया जाता है
न कभी भूलेंगे
और न कभी भूल ही पायेंगे
कुलियों के लहू-तर इंकलाब को
और वतन के उन शहीदों को
जिन के माथे खून की लाली चढ़ी ।
वह दुल्हन है
जिसके माथे सिंदूर लगा
वह आज़ादी है
जिसके माथे पर खून की लाली चढ़ी
किसने कहा ?
कि आज़ादी हमारी
बर्फ की परतों में मिली
जिस के आगोश में गरमी नहीं
युद्ध नहीं-संघर्ष नहीं
लहू की एक बूंद नहीं ।