भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

त्रिशंकु / पूजानन्द नेमा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:11, 11 दिसम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पूजानन्द नेमा |संग्रह=चुप्पी की आ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज के बच्चे
बढ़ी डाढ़ी लिए जन्म लेते हैं
आँखों में उन की
बुजुर्ग ने सवाल भरे होते हैं
…….और गुरुजी ?

भगवान की कविता में
फेनिल लहरों के प्रवेश-द्वार पर
मरकत और नील-मणि सदृश्य
बहुमूल्य रत्न पाकर
संसार के
सबसे बड़े विश्वविद्यालय में
याने माँ की गोद में
बौना बन
मार्न-द्वीप की तरह
पुनः जा बैठे हैं ।

चटकती धूप में
खेती अपनी झुलस रही है
और अलमस्त मास्टर जी !
डकारों की डकार लेकर
अपनी ही खटास को सूँघ-सूँघ
नाद-निनाद भरी तोंद पर
हाथ फेरने बैठे हैं ।

एक सैलाब
जंगलों में बहे जा रहा है
पर खेत में अपने अंजली भर पानी देना
कल वह भूल गए थे
आज बदहज़मी की जद्दो-जेहद में
कुछ याद नहीं
और कल की
कल पर है
अतः आज ही
वह कफन ओढ़ बैठे हैं ।