भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पहचान / सूर्यदेव सिबोरत
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:16, 12 दिसम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यदेव सिबोरत |संग्रह=एक फूल...ग...' के साथ नया पन्ना बनाया)
कुछ
समझ न पाया
तेरे चेहरे की
वर्णमाला को ।
या तो
मैं पढ़ न सका
या मैंने
पढ़ना नहीं जाना
या
पढ़कर भी
समझा नहीं कुछ
या मैंने
पढ़ा ही नहीं … शायद
क्योंकि
हर बार
उस पर
एक नया अक्षर होता
और
एक नया व्याकरण ।