भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिए / नीना कुमार

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:01, 14 फ़रवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीना कुमार }} {{KKCatGhazal}} <poem> बुला रही है ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बुला रही है चाँदनी, हौले से दस्तक दिए
के बेपायाँ अंधेरों में जलेंगें, कब तक दिए

बेदाग़ दरख्शां हैं सबके महल-ए-आरज़ू
के ज़ख्म-ए-हसरताँ, कब के हैं ढक दिए

ज़र्द ज़र्द सी किताबें, ये ज़र्द से शजर
बदलते मौसमों ने हैं कैसे सबक दिए

बेसब्र हो रहा था पैमाना-ए-दिल
कुछ बूँद लहू के यूँ ही छिटक दिए

उदास आज क्यूँ तेरी ज़ात है; ये कह-
दो बूँद आंसू भी हँस कर चमक दिए