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ये क़िस्सा वो नहीं तुम जिस को / ज़फ़र
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ये क़िस्सा वो नहीं तुम जिस को क़िस्सा-ख़्वाँ से सुनो
मेरे फ़साना-ए-ग़म को मेरी ज़बाँ से सुनो.
सुनाओ दर्द-ए-दिल अपना तो दम-ब-दम फ़रयाद
मिसाल-ए-नय मेरी हर एक उस्तुख़्वाँ से सुनो.
करो हज़ार सितम ले के ज़िक्र क्या यक यार
शिकायत अपनी तुम इस अपने नीम-जाँ से सुनो.
ख़ुदा के वास्ते ऐ हम-दमो न बोलो तुम
पयाम लाया है क्या नामा-बर वहाँ से सुनो.
तुम्हारे इश्क़ ने रुसवा किया जहाँ में हमें
हमारा ज़िक्र न तुम क्यूँके इक जहाँ से सुनो.
सुनो तुम अपनी जो तेग़-ए-निगाह के औसाफ़
जो तुम को सुनना हो उस शोख़-ए-दिल-सिताँ से सुनो.
'ज़फ़र' वो बोसा तो क्या देगा पर कोई दुश्नाम
जो तुम को सुनना हो उस शोख़-ए-दिल-सिताँ से सुनो.