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बढ़े है दिन-ब-दिन तुझ मुख की ताब / शाह मुबारक 'आबरू'

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बढ़े है दिन-ब-दिन तुझ मुख की ताब आहिस्ता आहिस्ता
के जूँ कर गरम होवे है आफ़ताब आहिस्ता आहिस्ता.

किया ख़त नें तेरे मुख कूँ ख़राब आहिस्ता आहिस्ता
गहन जूँ माह कूँ लेता है दाब आहिस्ता आहिस्ता.

लगा है आप सीं ऐ जाँ तेरे आशिक़ का दिल रह रह
करे है मस्त कूँ बेख़ुद शराब आहिस्ता आहिस्ता.

दिल आशिक़ का कली की तरह खिलता जाए ख़ुश हो हो
अदा सीं जब कभी खोले नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता.

लगा है ‘आबरू‘ मुझ कूँ वली का ख़ूब ये मिसरा
सवाल आहिस्ता आहिस्ता जवाब आहिस्ता आहिस्ता.