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ख़ाक आईना दिखाती है के / ज़ेब गौरी

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ख़ाक आईना दिखाती है के पहचान में आ
अक्स-ए-नायाब मेरे दीद-ए-हैरान में आ.

जगमगाता हुआ ख़ंजर मेरे सीने में उतार
रौशनी ले के कभी ख़ान-ए-वीरान में आ.

इस तरह छुप के कोई ढूँढ निकाले तुझ को
आसमानों से उतर कर हद-ए-इमकान में आ.