भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लहर लहर क्या जगमग जगमग / ज़ेब गौरी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:47, 24 फ़रवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज़ेब गौरी }} Category:गज़ल <poeM> लहर लहर क...' के साथ नया पन्ना बनाया)
लहर लहर क्या जगमग जगमग होती है
झील भी कोई रंग बदलता मोती है.
कावा काट के ऊपर उठती हैं क़ाज़ें
गुन गुन गुन गुन परों की गुंजन होती है.
चढ़ता हुआ परवाज़ का नश्शा है और मैं
तेज़ हवा रह रह कर डंक चुभोती है.
गहरे सन्नाटे में शोर हवाओं का
तारीकी सूरज की लाश पे रोटी है.
देखो इस बे-हिस नागिन को छूना मत
क्या मालूम ये जागती है या सोती है.
मेरी ख़स्ता-मिजाज़ी देखते सब है मगर
कितने ग़मों का बोझ उठाए होती है.
किस का जिस्म चमकता है पानी में 'ज़ेब'
किस का ख़ज़ाना रात नदी में डुबोती है.