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ख़ुदाया मिला साहिब-ए-दर्द कूँ / वली दक्कनी
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ख़ुदाया मिला साहिब-ए-दर्द कूँ
कि मेरा कहे दर्द बेदर्द कूँ
करे ग़म सूँ सद बर्ग सदपारा दिल
दिखाऊँ अगर चेहरा-ए-ज़र्द कूँ
हटा बुलहवस तुझ भवाँ देखकर
कहाँ ताब-ए-शमशीर नामर्द कूँ
अगर जल में जल कर कँवल ख़ाक हो
न पहुँचे तिरे पाँव की गर्द कूँ
लिखा तुझ दहन की सिफ़त में 'वली'
हर एक फ़र्द में जौहर-ए-फ़र्द कूँ