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गरचे तन्नाशज़ यार-ए-जानी है / वली दक्कनी

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गरचे तन्‍नाज़ यार-ए-जानी है
माया-ए-ऐश-ए-जाविदानी है

याद करती है ख़त कूँ ज़ुल्‍फ़-ए-सनम
काम हिंदू का बेदबानी है

तुझ सूँ हरगिज़ जुदा न हूँ मिरी जाँ
जब तलक मुझमें ज़िदगानी है

आशना नौनिहाल सूँ होना
समरा-ए-गुलशन-ए-जवानी है

दिल में आया है जब सूँ सर्व-ए-रवाँ
तब सूँ मुझ शे'र में रवानी है

ऐ सिकंदर न ढूँढ आब-ए-हयात
चश्‍मा-ए-ख़िज्र ख़ुशबयानी है

वक़्त मरने के बोलता है पतंग
कि मुहब्‍बत रफ़ीक़-ए-जानी है

गरचे पाबंद-ए-लफ़्ज़ हूँ लेकिन
दिल मिरा आशिक़ी-ए-मा'नी है

ऐ 'वली' फि़क्र-ए-साफ़-ए-साहब-ए-दिल
गोहर-ए-बहर-ए-नुक्‍तादानी है