भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जल्वागर जब सों वो जमाल हुआ / वली दक्कनी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:06, 9 मार्च 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वली दक्कनी }} {{KKCatGhazal}} <poem> जल्वागर जब ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
जल्वागर जब सों वो जमाल हुआ
नूर-ए-ख़ुर्शीद पायमाल हुआ
नश्शए-सब्ज़ए-ख़त-ए-ख़ूबाँ
वाली-ए-आलम-ए-ख़याल हुआ
याद कर तुझ भवाँ की बैत-ए-बुलंद
माह-ए-नो साहिब-ए-कमाल हुआ
देख कर तुझ निगाह की शोख़ी
होश-ए-आशिक़ रम-ए-ग़ज़ाल हुआ
हुस्न उस दिलरुबा का मुद्दत सों
अक्स-ए-आईना-ए-ख्य़ाल हुआ
वस्फ़ में तुझ भवाँ के हर मिसरा
सानी-ए-मिसरए-हलाल हुआ
जिनने देखा है तुझ निगाह का तेग़
फिर के जीना उसे मुहाल हुआ
अज़ल मजनूँ के बाद मुझकूँ 'वली'
सूबा-ए-आशिक़ी बहाल हुआ