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नक्शा / अनीता कपूर

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मैं तुम्हें कोई नक्शा नहीं देना चाहती,
क्योंकि आकाश का कोई नक्शा नहीं होता
आकाश में पगडंडियाँ भी नहीं होती
राजपथ तो दूर की बात है
आसमानों में उड़ते पक्षियों के साक्षी,
परों और पैरों के चिह्न नहीं मिलते
बुद्ध, जीसस, मुहम्मद या राम के भी
कोई चिह्न नहीं छूटे आकाश में
आकाश तो वैसे का वैसा ही है, खाली -सा
तुम भी उड़ के देख तो लो
उड़ तो लोगे, पर कोई चिह्न नहीं छोड़ पाओगे
अच्छा ही है कि, चिह्न नहीं छूटते
वरना लोग नकलची होते
तुम्हारी पहचान खत्म हो जाती
लोग तो दूसरों के पैरों पर पैर रख कर
चलना चाहते हैं
अपनी आत्मा को न तराश कर
दूसरों की आत्मा की भी कार्बन कॉपी बनना चाहते है
उससे फिर जीवन में धारा कैसे आए
नयी आत्मा का जन्म कैसे होगा?
क्यों न बाहर के आकाश की बात और सीमा
वैज्ञानिकों पर छोड़ दें
लेकिन भीतर के आकाश की कोई सीमा नहीं
भीतरी आकाश अनन्त है
हममें उड़ने की क्षमता
जन्मजात है
फिर भी अनदेखा कर
उड़ना चाहते हैं बाहरी आकाश में
तभी तो घिसटता ही रह जाते हैं
क्षमता और वास्तविकता में मेल नहीं हो पाता
यही हमारा दु:ख है, यही पीड़ा है,
यही हमारा संताप है
जीवन प्रतिकूल हो जाता है
इसीलिए मेरी बात सुनो!
आप जब अपने ही अंतराकाश में विचरेंगे
और पंख फैलाएँगे, वैसे ही आनंद होगा
और खुद का ही विस्तृत आकाश होगा
तथा स्वचित्रित इंद्र्धनुष भी