भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अस्थिर है छवि तुम्हारी / ओसिप मंदेलश्ताम
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:23, 15 अक्टूबर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=ओसिप मंदेलश्ताम |संग्रह=तेरे क़दमों का संगीत / ओसिप ...)
|
अस्थिर है
छवि तुम्हारी
और बेहद यातनादायक
कोहरे में मैं छू नहीं पाया उसे
पर मुँह से निकला अचानक-- ऎ ख़ुदा!
हालाँकि सोचा नहीं था मैंने
कि ऎसा कहूंगा
ईश्वर का नाम
जैसे मेरे हृदय से निकल कर उड़ा
एक बड़ा पक्षी है कोई
जिसके सामने लहरा रहा है
घना कोहरा
और पीछे है खाली पिंजरा
(रचनाकाल : 1912)