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इश्क में लज्ज़तें मिला देखूँ / पवन कुमार
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इश्क में लज्ज़तें मिला देखूँ
उससे करके कोई गिला देखूँ
कुछ तो ख़ामोशियाँ सिमट जाएँ
परदा-ए-दर को ले हिला देखूँ
पक गए होंगे फल यकीनन अब
पत्थरों से शजर हिला देखूँ
जाने क्यूँ ख़ुद से ख़ौफ लगता है
कोई खंडर सा जब किला देखूँ
इक हसीं कायनात बनती है
सारे चेहरों को जब मिला देखूँ
कौन दिल्ली में ‘रेख़्ता’ समझे
सबका इंगलिस से सिलसिला देखूँ
बैठ जाऊँ कभी जो मैं तन्हा
गुजरे लम्हों का काफ़िला देखूँ
रेख़्ता = दिल्ली की ठेठ उर्दू भाषा