भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

परेशाँ हुए थे न हैरान थे / 'आशुफ़्ता' चंगेज़ी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:32, 30 अप्रैल 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='आशुफ़्ता' चंगेज़ी }} {{KKCatGhazal}} <poem> परेश...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

परेशाँ हुए थे न हैरान थे
कई दिन से बारिश के इम्कान थे

ये कैसी कहानी सुनाई गई
सभी सुनने वाले पशेमान थे

इशारे में जो अपना घर फूँक दें
कभी शहर में ऐसे नादान थे

सभी वलवले दिल के दिल में रहे
मुसलसल इधर अहद ओ पैमान थे

लरज़ते थे घर से निकलते हुए
कभी राह में इतने मैदान थे

ज़माना हुआ धूप सेंके हुए
बहुत बंद कमरे के अरमान थे