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परेशाँ हुए थे न हैरान थे / 'आशुफ़्ता' चंगेज़ी

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परेशाँ हुए थे न हैरान थे
कई दिन से बारिश के इम्कान थे

ये कैसी कहानी सुनाई गई
सभी सुनने वाले पशेमान थे

इशारे में जो अपना घर फूँक दें
कभी शहर में ऐसे नादान थे

सभी वलवले दिल के दिल में रहे
मुसलसल इधर अहद ओ पैमान थे

लरज़ते थे घर से निकलते हुए
कभी राह में इतने मैदान थे

ज़माना हुआ धूप सेंके हुए
बहुत बंद कमरे के अरमान थे