Last modified on 9 मई 2013, at 09:52

मेरे वृन्त पर / भवानीप्रसाद मिश्र

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:52, 9 मई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र }} {{KKCatKavita}} <poem> मेर...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मेरे वृन्त पर
एक फूल खिल रहा है
उजाले की तरफ़ मुंह किये हुए I

और उकस रहा है
एक कांटा भी
उसी की तरह
पीकर मेरा रस
मुंह उसका
अँधेरे की तरफ़ है I

फूल झर जाएगा
मुंह किए -किए
उजाले की तरफ़
काँटा
वृन्त के सूखने पर भी
वृन्त पर बना रहेगा