भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जो तसव्वुर से मावरा न हुआ / इक़बाल सुहैल
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:47, 15 मई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इक़बाल सुहैल }} {{KKCatGhazal}} <poem> जो तसव्वु...' के साथ नया पन्ना बनाया)
जो तसव्वुर से मावरा न हुआ
वो तो बंदा हुआ ख़ुदा न हुआ
दिल अगर दर्द-आश्ना न हुआ
नंग-ए-हस्ती हुआ हुआ न हुआ
रूतबा-दाँ था जबीन-ए-इश्क़ का मैं
हुस्न के दर पे जब्हा सा न हुआ
दिल ख़ता-वार-ए-इश्तियाक़ सही
लब गुनह-गार-ए-इल्तिजा न हुआ
नंग है बे-अमल क़ुबूल-ए-बहिश्त
ये तो सदक़ा हुआ सिला न हुआ.