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चंदन क फूल / प्रतिभा सक्सेना

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चँदन केर बिरवा मइया तोरे अँगना
कइस होई चँदन क फूल!

कनिया रहिल माई बाबा से कहलीं,
लेइ चलो मइया के दुआर!
केतिक बरस बीति गइले निहारे बिन
दरसन न भइले एक बार!
हार बनाइल मइया तोहे सिंगारिल,
चुनि-चुनि सुबरन फूल!

जइहौ हो बिटिया, बन के सुहागिनि,
ऐतो न खरच हमार,
आपुनोई घर होइल, आपुन मन केर
होइल सबै तेवहार!
बियाह गइल, परबस भइ गइले हम,
रे माई तू जनि भूल!

ना मोर पाइ धरिल एतन बल,
ना हम भइले पाँखी!
कइस आइल एतन दूरी हो
कइस जुड़ाइल आँखी!
कोस कोस छाइल गमक महमही,
पाएल न चँदन क फूल!

आपुनपो लै लीन्हेल गिरस्थी
अब मन कइस सबूरी!
चँदन फूल धरि चरन परस की -
जनि रह आस अधूरी!
विरवा चँदन,गाछ बन गइला
मइया अरज कबूल!