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रुचि / मनोज कुमार झा
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रहने दें ये मिठाइयाँ, मैं धनिया की चटनी
पर खत्म करूँगा खाना
दादा बारात में मछली के मूड़ा पर उठते थे
और घर में टूँगते थे हरी मिर्च अंत में
दादी इतना पानी पीती थी कि पता नहीं
कब खत्म होता था खाना
पिता अंत में दही को शुभ मानते थे मगर
बारहा अचार चाटते उठते थे
मैं अंतिम कौर में बच्चों के लिए बचा रखती थी
अमरीका में लगे इंजीनियर लड़के ने वहाँ के खाने की तारीफ की
और यहाँ के पत्तल की
बगल में बैठे वृद्ध हाथ रोक कुछ पूछ रहे थे
मगर लड़का उठ गया पाँत तोड़कर
खैर! मुझे धनिया की चटनी पर ही खत्म
करने दें
और आप कहें तो रख लूँ इन्हें, बड़के काका
बहुत दिनों से चाह रहे भोजन मिठाइयों पर इतियाना