भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपनी हँसी / रंजना जायसवाल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:18, 26 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल }} {{KKCatKavita}} <poem> गंजे की ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गंजे की टोपी छीनकर
हँसा वह
अंधे की लाठी छीनकर
लंगड़े को मारकर टँगड़ी हँसा
भूखे की रोटी छीनकर
सीधे को ठगकर
औरत को गरियाकर
हँसता ही गया वह
मैंने गौर से देखा उसे
वह बेहद गरीब था
उसके पास अपनी
हँसी तक नहीं थी