Last modified on 26 जून 2013, at 19:27

आजादी का सुख / रंजना जायसवाल

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:27, 26 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल }} {{KKCatKavita}} <poem> खिलखिला ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

खिलखिला रहे हैं घूरे के फूल
न खाद न पानी
न ममता न दुलार
न किसी की देखभाल
फिर भी गमले के फूलों से
ज्यादा चटख हैं
घूरे के फूल
धूप हवा बारिश का
सीधा प्रहार झेलकर
कचरे से खींचकर आहार
हृष्ट-पुष्ट,मस्त
और आजाद है घूरे के फूल
जबकि मुट्ठी भर
धूप हवा पानी खाद के साथ
प्यार -दुलार से बढ़े
गमले के फूल
कुछ फीके हैं
जानते हैं वे
कभी भी तोड़ कर उन्हें
चढ़ाया जा सकता है
देवताओं को
पूरी जिंदगी जीनी है उन्हें
एक कमरे की शोभा बनकर
वे सपने में भी नहीं सोच सकते
धूप हवा बारिश में भीगने
खुलकर जीने
और अपनी आजादी के बारे में
इसलिए उदास हैं कुछ |