पुरुष नाराज हैं कि मैट्रो में महिला केबिन बन गए
ज्यादा नाराज हैं कि उनके केबिनों में भी
महिलाओं के लिए आरक्षित जगह है वे चाहते हैं
पुरुषों के भी ऐसे केबिन बनें
जहाँ महिलाएँ प्रवेश न कर सकें
वे कहते हैं, कितनी ज्यादती है पुरुषों के साथ
कि आपातकाल में भी नहीं रख सकते
महिला केबिन में पाँव
भले ही केबिन पूरी तरह खाली हो
और वे जब चाहें घुस आएँ
जनरल केबिनों में साधिकार
दोनों केबिनों के बीच
जो [बाघा] बार्डर है
होती है लगभग रोज ही लड़ाई
स्त्री-पुरुष के बीच
स्त्री का पक्ष है कि मेट्रो की भीड़ में
महिलाओं के बीच वे सुरक्षित हैं
अभद्रता छेड़खानी अवसर देख मनमानी
नहीं कर पा सकने से
पुरुषों में बौखलाहट है मैं चिंतित हूँ
निरंतर बढ़ती जाती
इस विभाजक रेखा से
बार्डर के दोनों तरफ
एक-दूसरे को शत्रु भाव से घूरते
गुर्राते-किटकिटाते
स्त्री-पुरुष आखिर
कौन सा इतिहास रच रहे हैं ?