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प्रियतम! कैसे तुम्हें समझाऊँ / अज्ञेय

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प्रियतम! कैसे तुम्हें समझाऊँ कि वह अहंकार नहीं है?
वह आत्म-दमन है, घोर यातना है,
किन्तु वह मेरा स्त्रीत्व का अभिमान भी है,
मेरे प्राणों की अभिन्नतम पीड़ा
जिस के बिना मैं जी नहीं सकती!

डलहौजी, सितम्बर, 1934