भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपने लिए, शमशेर / रविकान्त
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:17, 28 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रविकान्त }} {{KKCatKavita}} <poem> (कवि शमशेर के ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(कवि शमशेर के चित्र से एक संवाद)
शमशेर !
मेरे तलवों को भेद कर
मेरे हृदय तक
विचारों के उलझाव तक आओ
मैं तुम्हारे चित्र को
माथे से नहीं लगा सकता
वहाँ दाग हैं अनेक
हृदय से सीधे नहीं लगा सकता तुम्हें
- न जाने कितनी पर्तों के नीचे
दबता गया है
निश्छल प्रेम
कुछ अरमानों के खून की बू है
इन हाथों में
मेरे पैर बेगुनाह हैं अभी
इधर से होकर आओ
- मेरे रूपाडंबर तक
मुझे लगता है
जल्द ही ऐसा होगा कि यह अँधेरा नहीं रहेगा
तब तुम कहीं और चले जाना, शमशेर