भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चाय / रविकान्त
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:18, 28 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रविकान्त }} {{KKCatKavita}} <poem> न जाने कहाँ से...' के साथ नया पन्ना बनाया)
हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।
न जाने कहाँ से आती है पत्ती
हर बार अलग स्वाद की
कैसा-कैसा होता है मेरा पानी!
अंदाजता हूँ चीनी
हाथ खींचकर, पहले थोड़ी
फिर और, लगभग न के बराबर
जरा-सी
कभी डालता हूँ गुड़ ही
चीनी के बजाय
बदलता हूँ जायका
अदरक, लौंग, तुलसी या इलायची से
मुँह चमकाने के लिए महज
दूध की
छोड़ता हूँ कोताही
हर नींद के बाद
खौलता हूँ
अपनी ही आँच पर
हर थकावट के बाद
हर ऊब के बाद