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धार / रविकान्त

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देश में हाँफ रहा है असली देश
सुख में गुम है सुख
दुःख के ब्रह्मांड में छुपाकर रखा गया है
असली दुःख

चेतना ढूँढ़ती है अपनी धार
संघर्षरत होने पर भी कुछ लोग
नहीं चख पाते कोई स्वाद!

सूरज के आर-पार जब कभी
वेदना सहलाती है आकाश
लगता है
हाँ, जी रहा हूँ मैं