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अन्तिम विनिमय / शमशेर बहादुर सिंह
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हृदय का परिवार काँपा अकस्मात।
भावनाओं में हुआ भू-डोल-सा।
पूछता है मौन का एकान्त हाथ
वक्ष छू, यह प्रश्न कैसा गोल-सा :
प्रात-रव है दूर जो 'हरि बोल!' सा,
पार, सपना है - कि धारा है - कि रात?
कुहा में कुछ सर झुकाए, साथ-साथ,
जा रहा परछाइयों का गोल-सा!
× ×
प्राण का है मृत्यु से कुछ मोल-सा;
सत्य की है एक बोली, एक बात।
[1945]