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कठिन प्रस्तर में / शमशेर बहादुर सिंह
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कठिन प्रस्तर में अगिन सूराख।
मौन पर्तों में हिला मैं कीट।
(ढीठ कितनी रीढ़ है तन की -
तनी है!)
आत्मा है भाव :
भाव-दीठ
झुक रही है
अगम अंतर में
अनगिनत सूराख-सी करती।