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अश्क पलकों पे उठा ले आऊँ / निश्तर ख़ानक़ाही

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अश्क पलकों पे उठा ले आऊँ
आँख उर्यां* है, क़बा* ले आऊँ

अब तो इस दश्त में दम घुटता है
शहर से उसके, हवा ले आऊँ

तुम भी अब ताज़ा सनम को पूजो
मैं भी इक और ख़ुदा ले आऊँ

वो भी इस रात अकेला होगा
अब उसे घर से बुला ले आऊँ

लुट चुका सारा असासा* दिल का
जान ही अब तो बचा ले आऊँ

रोज़ इस सोच में सूरज निकला
धूप से पहले घटा ले आऊँ

1- उर्यां--नग्न

2- क़बा--वस्त्र

3- असासा--पूँजी