भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक नींबू के सहारे / संजय कुंदन

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:51, 13 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय कुंदन }} {{KKCatKavita}} <poem> नींबू के टुक...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नींबू के टुकड़े को कस कर निचोड़ रहा हूँ दाल पर
कि थोड़ा रुच जाए खाना
लंबे ज्वर से उठने के बाद खोज रहा हूँ फिर से स्वाद

थोड़ा खट्टा रस फिर जोड़ सकता है अन्न से रिश्ता
एक शीतल चमकदार नींबू पर इतनी ज्यादा टिक गई है उम्मीद कि
लगता है वही मेरे कपड़े निकाल लाएगा
मेरा चश्मा और थैला भी
वह एक रिक्शे वाले को आवाज देगा और उसे हिदायत देगा
इन्हें ठीक से ले जाना भाई