Last modified on 16 जुलाई 2013, at 21:53

बाँसों के वनों तले / विकि आर्य

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:53, 16 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विकि आर्य }} {{KKCatKavita}} <poem> बाँसों के वनो...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बाँसों के वनों तले
क्यों पसरे रहते हैं
अंधेरे और नाग ?
गाँठ - गाँठ बंधे पड़े हैं
सब बाँस !
कोई भी गीत नहीं गाता
या तो चिर कर पटपटाते हैं
या केंचुल सी उतारते हैं
अभिव्यक्ति के लिए
खुले हुये मुख नहीं हैं
किसी के पास !
सब के सब बाँस,
सिर्फ बाँस हैं
बहुत भाग्यशाली होते हैं
वे बाँस, जो बाँसुरी बनते हैं
किसी को कुछ कह सकते हैं,
रो सकते हैं,
गा सकते हैं!