अमरीकन भौजी / महेश चंद्र द्विवेदी
फून आवा है कि अबकि होरी पर ऐहैं भौजी अमरीका वाली‚ गोरी भौजी के आवन की खबर सुन‚ सनक गै हमार घरवाली। बोली–"पहिलवै कौन कम सांसत रहै‚ पड़ौसन लौ टले न टाली‚ तुम्हरे संग घुलमिल के रंग खेलैं‚ दूर दूर की सलहज औ साली।"
उहिके मन मा घोर संसय जाग‚ यहि से ऊ चिहूंक चिहुंक चलै लाग‚ कहै–"कैसे सपरिहै? नौकर तो सराब पी औंधे मुंह पड़े हुईहैं नाली" मन मा सोचे–" इनका रिझावन का कौन कम है – सांवली और काली"‚ तब से अब रोज गालन पै पौडर – लाली लगाय‚ निरखै कानन की बाली।
हमार लॉन लौ अमरीकन लागै लाग‚ मटकै लाग माली मनमौजी‚ है तो ऊ नामी कामचोर‚ पर है नये – नये फूल – पत्तिन का खोजी। बौराय गवा – गेंदन बिच भांग लगाइस‚ और गुलाबन बिच कलौंजी‚ क्यारिन बिच नाचे – गावै‚ यहि बरस अइहैं हमरी अमरीकन भौजी।
होरी के दिन जीन्स – टाप – बेल्ट पहिने‚ फाट पड़ी अमरीकन भौजी‚ गजगामिनी की जीवित मिसाल‚ ऊपर से बाल कटवाय रहैं फौजी। पहली बार होरी केर हुड़दंग देख‚ उंमंग में आइके कूद पड़ी हौजी‚ तब हमार ऊ हंसके बोली‚ "हाय‚ होरी पै हुरियाय गईं अमरीकन भौजी।"