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अर्थहीनता / उमा अर्पिता
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बहुत सपने
सजाए थे, मैंने
अपनी आँखों में--
चाहत की थी
खूबसूरत फूलों से खिलते जीवन
और
तुम्हारे साथ की--
अब, जब कि तुमने
मेरे/समर्पण की भावना को ही
स्वीकारने से इंकार कर दिया
झुठला दिया उसे
तब ऐसे में
क्या अर्थ रह जाता है
तुम्हारी आँखों में
मेरे होने, न होने का--!