Last modified on 17 जुलाई 2013, at 18:27

बारात और पाँव / उमा अर्पिता

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:27, 17 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उमा अर्पिता |संग्रह=कुछ सच कुछ सप...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बारात देखने को
उत्सुकता से भाग उठते थे जो, वो थे
बचपन से जवानी की ओर
बढ़ते पाँव…
आज--
बारात को देखते ही
ठिठक उठते हैं जो, वो हैं
चढ़ती उम्र के
थके-हारे पाँव…

पाँव, जो अब हँसते नहीं,
खिलखिलाते नहीं
बस, धीरे-धीरे
सुबका करते हैं!
पाँव, जो थक चले हैं
गली से गुजरती
बारात देखते
और, उम्र की सीढ़ियाँ चढ़ते...!