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पंचम /गुलज़ार

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याद है बारिशों का दिन पंचम
जब पहाड़ी के नीचे वादी में,
धुंध से झाँक कर निकलती हुई,
रेल की पटरियां गुजरती थीं--!

धुंध में ऐसे लग रहे थे हम,
जैसे दो पौधे पास बैठे हों,.
हम बहुत देर तक वहाँ बैठे,
उस मुसाफिर का जिक्र करते रहे,
जिसको आना था पिछली शब, लेकिन
उसकी आमद का वक्त टलता रहा!

देर तक पटरियों पे बैठे हुये
ट्रेन का इंतज़ार करते रहे.
ट्रेन आई, ना उसका वक्त हुआ,
और तुम यों ही दो कदम चलकर,
धुंद पर पाँव रख के चल भी दिए

मैं अकेला हूँ धुंध में पंचम!!