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कागज़ की उदासीनता / शर्मिष्ठा पाण्डेय

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कागज़ की उदासीनता से भरा-भरा रहा कलम का दिल
तटस्थता हद से बढ़ी तो स्याही
बन ढुलक आये उसके आंसू
छप गयीं दर्द की इबारतें
बदल गया कोरापन कालेपन में
हर काला निशान महाकाव्य नहीं रचता
हर काला धब्बा
नज़र का टीका भी नहीं बनता
हाँ! कुछ काले दाग नसीब की लकीरों से संघर्ष करते उग आते
जिन्हें न स्याही धो पाती न आंसू
तुम चाहो तो किस्मत और कागज़ को अलग-अलग मान लो
मैं नहीं मान सकी कभी