भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पिता / शर्मिष्ठा पाण्डेय

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:00, 3 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शर्मिष्ठा पाण्डेय }} {{KKCatKavita}} <poem> पूज...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पूजे जाते शिव सदा और पी रहे हैं विष पिता
मूल फैलाता है बरगद,बूढ़े होते हैं पिता
चूने वाली दीवारों पर काई से जमते पिता
बढ़ती जाती हैं ज़मीनें घटते जाते हैं पिता
बढ़ रहा है शोर घर में चेहरे पढ़ते हैं पिता
आजकल कुछ और भी सहमें से रहते हैं पिता
सर्दी में लहजे की ठंडक झेल लेते हैं पिता
भीतरी एक खोल में दुबके से रहते हैं पिता
छोट,मंझले,बड़े के से हो गए ढेरों पिता
नन्हें-नन्हें टुकड़ों में बंटते गए पूरे पिता
अनुभवों की सीढ़ी पर ऊँचे बहुत बैठे पिता
पुराने चश्मे से दुनिया जांचते हैं नयी,पिता
बोनसाई के लिए घर से उखाड़े गए पिता
तुलसी चौरे,से पनपते हैं कहीं भी अब पिता
जायदादी कागजों में स्याही के धब्बे पिता
पेंशन की लाइनों में हैं अभी जीवित पिता
गंदुमी धोती में ढूंढें है शपा कबसे पिता
रेशमी अचकन में फोटो में मढ़े रक्खे पिता