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हीर / शर्मिष्ठा पाण्डेय

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राँझा मेरे लब की लाली और आँखों का काजल
बिन रांझे के कोरे नैना जैसे सूखे बादल
मिला दे मुझको माटी में, जनम नया दिला दे
माँ री माँ एक बार वो मुझको रांझा यार मिला दे



मुझे न भावे ढोल, मंजीरे, ताशों की आवाज़
तरसूँ मैं सुनने को प्यारी वह 'वंझली' का साज़
जिन होंठों से लगी रे 'वंझली' वो ही लम्श जगा दे
अब भावे न 'राज-सियाला', 'टीला जोगियां' बिठा दे
कर एहसान अभागन पर मुझ , सोये भाग जगा दे
माँ री माँ एक बार वो मुझको रांझा यार मिला दे



आग लगी रांझे की तन में, अंग-अंग झुलसा जाए
जला के कर दे राख मेरी तू, फूंक हवा में उड़ा दे
संग हवा में उडती जाऊं, नज़र न कोई आवे
'तख़्त हजारे' से जा गुजरूँ जो रांझे को भावे
जंचता ना अब काबे का रब, हूक कलेजा चीरे
हाथ कलीरे वाला चूड़ा राँझा -राँझा रोवे
रख दे छुरियां गर्दन पे माँ, दूध बख्श दे तेरा
दिल मेरा राँझा राँझा बोले, रहा न अब ये मेरा
लाल महावर, सुर्ख ये मेहँदी फीकी पड़ती जावे
रंग रांझे का मिला दे माँ री, धनक सी बिखरी पावे
रूप अभागन को मेरी माई, अमर सुहाग चढ़ा दे
माँ री माँ एक बार वो मुझको रांझा यार मिला दे



जो न मिला मुझे यार वो मेरा, मैं जोगन बन जाऊं
संग उसी 'कन फटे' जोगिया के मैं जोग जगाऊँ
मैं बोलूं ना 'अलख-निरंजन' राँझा राँझा गाऊं
जे हो बैरी 'गोरखनाथा', मुझको क्या परवाह
राँझा मेरा मैं रांझे की, खुदा ही बना गवाह
अब बिरहन का बिरह समाया, खुद से हुई बेगानी
इस तन लागे लगन ना कोई, ज़हर की हल्दी घोली
जो न मिलेगा राँझा मुझको, पगली मैं हो जानी
संग 'चिनाबे' की धरा के बहती, लागूँ पानी
इस जनम पार करा दे, फिर मैं लौट न आनी
हाथ पकड़ रांझे का मेरा पार अभी हो जानी
छोड़ दूँ सारे नाते, रीतें, मतवारी सी बना दे
पीर कलेजे डसे नाग री, 'जोगिया मन्त्र' पढ़ा दे
जो एक बार मैं देख लूँ माँ री उस जोगी का मुखड़ा
हाथ तेरे मैं मर-मर जाऊं, लब से करूँ न शिकवा
प्रीत की मारी मुझ बावरी के पीले हाथ करा दे
राँझा हल्दी, राँझा मेहँदी चूड़ियाँ राँझा ला दे
माँ री माँ एक बार वो मुझको रांझा यार मिला दे