कुछ क्षणिकाएँ / शर्मिष्ठा पाण्डेय
1. अट्ठन्नी
उसकी गंदुमी रंग
चमड़ी वाली साड़ी
पर नीले नसों के
जाल वाला डिजाइन
देखा, याद आया
अरे!! अट्ठन्नी तो
अभी भी है
चलन में
2. वियोग
बृहस्पतिवार को
नहीं लीपूंगी
'हृद्यांगन'
कहीं हो न जाए
'प्रिय वियोग'
3. इतिहास
सुना था
दोहराया जाएगा
इतिहास
इसलिए
संवारती रही
भविष्य
4. लहरें
कितनी निगरानी
रखी, लहरों पर
गिनती रही
फिर भी
एक जा मिली
सागर से
सच है
'प्यार पर जोर नहीं'
5. कीमत
नाक का मोती
गिर गया
दुर्लभ था
जिसने पाया
बेचा, और
जुगाड़ किया
कुछ दिनों की
रोटी का
6. फूल
आज खिला
इकलौता गुलाबी गुलाब
मचल गयी
छूने को, चूमने को
उसे भी तो
हुई होगी ना सिहरन
मेरे स्पर्श से
तभी तो लजाया
लाल हुआ
7. समुद्र
बहुत सुना
तुम्हारे बारे में
अंत में पाया
कुछ नहीं हो
'अगस्त्य' की प्यास
से ज्यादा
8. रोटी
कितनी मिलती जुलती
सुहाग की भूखी
विधवा माँ की सफ़ेद बिंदी
और, कभी न मिटने वाली
भूखे पेट की
सफ़ेद गोल रोटी
9. सपने
ढीठ सपने
बहुत रुलाते
इसलिए मैंने
सजा दी उन्हें
सोती नहीं मैं
और, अब वो रोते हैं
10.
जब जब बरसीं ज़रूरतें
टपकती रही गरीब की छत
और पलकों वाली छप्पर
कहीं पानी कहीं आंसूं
11.
परखनली शिशु के
प्रारंभिक संस्कार काँच थे
इसलिए चुभता रहा हमेशा
बाप की वंशावली में
12.
गोल चौराहे से जुड़े
चार अलगअलग रास्ते
दो रास्तों के बीच के रिक्तस्थानों
ने तय किये उनके सम्बन्ध
'स्पेस' तो चाहिए ना
13.
रीढ़ की हड्डी में
लगाईं जाने वाली सुई
तुम्हारे प्रेम जैसी थी
सुन्न ह्रदय के साथ
कभी तन कर खड़ा न
होने देने वाली