भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कन्याकुमारी : सूर्योदय : सूर्यास्त / दूधनाथ सिंह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:36, 27 अक्टूबर 2007 का अवतरण
काले समन्दर में अचानक एक लाल स्तम्भ उगता है ।
लहर-लहर मारती है गैंती--टूटकर फैलता है लाल रंग
एक ग़ुस्सैल इशारे की तरह
तमतमाता हुआ सूरज
उठता है : गिरता है
काला समन्दर फिर
अपना वही अट्टहास-- शुरू करता है
लौटते हैं हम चुपचाप ।
शुरू होती है कविता फिर
एक चीख़ की मानिन्द ।