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दिल में शोला था सो आँखों में नमी बनता गया / 'शहपर' रसूल

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दिल में शोला था सो आँखों में नमी बनता गया
दर्द को बे-नाम जुगनू रौशनी बनता गया

एक आँसू अजनबियत का नदी बनता गया
एक लम्हा था तकल्लुफ़ का सदी बनता गया

क्या लबालब रोज़ ओ शब थे और क्या वहशी था मै।
ज़िंदगी से दूर हो कर आदमी बनता गया

कब जुनूँ में खिंच गई पैरों से अर्ज़-ए-एतदाल
और इक यूँही सा जज़्बा आशिक़ी बनता गया

रफ़्ता रफ़्ता तीरगी ने दश्त-ए-जाँ सर कर लिया
रौशनी का हर फ़साना अन-कही बनता गया

ज़िंदगी ने कैसे राज़ों की पिटारी खोल दी
आगही का हर तयक़्कुन गुम-रही बनता गया

शहर का चेहरा समझ कर देखते थे सब उसे
और वो ख़ुद से भी ‘शहपर’ अजनबी बनता गया