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हमहूंत रहली जलके मछरिया / महेन्द्र मिश्र

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हमहूंत रहली जलके मछरिया जालवा फंसवल ए माधो
माधो धई देलऽ तलफी भुंभुरिया कि जियते जरवल ए माधो।
हमहूं रहलीं भोरी रे चिंड़इया खोतवा उजरल ए माधो
माधो डहकीं ले अब दिन रात, बिरहिनिया बनवल ए माधो।
हमहूँ त रहली अबला अनारी पिरीतिया लगवल ए माधो
माधो भागि गइल अंगुरी छोड़ाई कि नइया डूबवल ए माधो।