भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मातृभासा और राष्ट्रभासा / मनोरंजन प्रसाद सिंह
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:47, 23 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोरंजन प्रसाद सिंह }} {{KKCatKavita}} {{KKCatBhojpur...' के साथ नया पन्ना बनाया)
दोहा
जय भारत जय भारती, जय हिंदी, जय हिंद।
जय हमार भासा, जय गुरु, जय गोबिंद।।
चौपाई
ई हमार हऽ आपन बोली। सुनि केहू जनि करे ठठोली।।
जे जे भाव हृदय के भावे। ऊहे उतरि कलम पर आवे।।
कबो संसकृत, कबहूँ हिंदी। भोजपुरी माथा के बिंदी।।
भोजपुरी हमार हऽ भासा। जइसे हो जीवन के स्वांसा।।
जब हम ए दुनिया में अइलीं। जब हमई मानुस तनु पइलीं।।
तबसे जमल रहल जे टोली। से बोले भेजपुरिआ बोली।।
हमहू ओही में तोतरइली। रोअली हँसलीं बात बनइलीं।।
खेले लगलीं घुघआमाना। उपजल धाना, पवली खाना।।
चंदा मामा आरे अइले। चंदा मामा पारे अइले।।
ले ले अइले सोन कटोरी। दूध भात ओकरा में धोरी।।