भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीवन किस के लिए / धीरेन्द्र अस्थाना

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:40, 24 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धीरेन्द्र अस्थाना }} {{KKCatKavita}} <poem> नदी ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नदी की धारा,
जो अनवरत
गतिज है
अनंत सागर में
लीन होने के लिए!

मिट जायेगा
अस्तित्त्व उसका
पर साकार हो जायेगी
और विस्तृत होने के लिए!

जल की वह बूँद
जो आतुर है
धरा की प्यास को
बुझाने के लिए!

ऐसे जीवन जो
मिटा देते हैं स्वयं के
अस्तित्व को
किसी और के
अस्तित्व के लिए!

पर यह मानव जीवन
हो गया स्वार्थी
मिटा रहा है अन्य को
स्वयं के लिए!

अरे सोंच!
क्यों हुआ तेरा
प्रादुर्भाव और
यह जीवन किस के लिए!