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तितकी / शिव शंकर सहाय ‘सिद्धार्थ’

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लहकत दुपहरिया
हाड़-मास-खून जमावत शीतलहरी में
‘धनराज‘
पत्थरन के काटेलन
काट-काट के तूरेलन।
‘धनराज‘ के
रोंआँ- रोंआँ में
खून-साँस आ संस्कार में
पेहम बा
पत्थरन के धूर, पत्थरन के गंध।
बाकिर
पत्थरन के काटे में
पत्थरन के तूरे में
जवन ‘तितकी‘ निकलेला
ओकरा के ‘धनराज‘
चिन्हस काहे ना ?
ओकर मर्म काहे ना जानस ?
‘धनराज‘
ई काहे ना बूझस
कि
अपना ‘मेहनत‘ के ‘तितकी‘ से
पूरा व्यवस्था बदले खातिर
मशाल जरावल जा सकेला.........