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रोकि द लड़ाई / सीतारामचन्द्र शरण ‘राम’
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हथियार के बढ़ंती
हथिहार बढ़ि रहल बा ;
ई आदमी बा मूरूख
हाथे लड़ि रहल बा।
हथियार जीति ली का
ना आदमी सम्हारे?
हथियार का मुआई
जो आदमी ना मारे?
खतरा बा बादमी से
हथियार से का खतरा?
जो खून के पियासल
चाहेला खून-खतरा।
जान बचावेला
ऊहे सदा जियेला ;
ले जान अनकर
अमिरित कहाँ पियेला?
नाहिं त आदमी का
ऊ जानवर कहाई,
जे आदमी के देखी
त चीरि-फारि खाई।
मन सोच ई, धरा पर
कुछ जीत-हार होला
जे मारेला मुए न
मुअला से हार होला
ए आदमी तू जाग
जनि कफन मुँह लपेट
आ आदमी के जिनिगी
जनि नीन में समेटऽ
ए आदमी कमा लऽ
कुछ नाम कामे आई
गुन तोहरे सभे गाई
जो रोकि दऽ लड़ाई