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बधार के बहार / बैद्यनाथ पाण्डेय ‘कोमल’

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चढ़ते असढ़वा-सवनवाँ बधरिया में
छाइ गइले अजबे बहार।
अरिया पगरिया उंड़रिया में भइले रे
धरती के शुरू अब सिंगार।
हरवाके मुठुका प कतहूं किसनवाँ के
बिहँसत अनुपम प्रीत।
मुहँवा से ‘अरिए’ ‘ठोकरवा’ के तलवा प
निकले किसनवाँ के गीत।
चम-चम चनिया से चमकत पनिया में
झलके परस्पर प्यार।
अरिया के धरिया में खेतवन के परिया में
मचि गइले रसिया के रास।
पछिया के लहरा प लहरत पनिया से
मिटले बधार के पियास।
रहि-रहि उमगत बदरा पियरवा से
बरसेला रस के फुहार।
बहे दखिनहवा त लहरेला बीचड़ा के
लरकत लचकत पात।
लहरा के लाई बीचड़ा के हुलसाई के रे
मने-मने खूब हुलसात।
बिजुरी बदरिया के ओट से बधरिया के
छवि लेत झाँकि के निहार।
स्गरो बा हँसिया, हुलास बाटे सगरो से
धन रे बधरिया के भाग।
छुप-छुप पनियाँ के बजत मँजीरवा प
लहरल रोपनी के राग।
अब त कजरिया के लगले बजरिया से
मिट जाला जिनिगी के भार।
करहा-कुरुहिया के कल-कल पनिया में
बहताड़े रोपवा के जान।
रोपवा से करे अठखेल दखिनहिया रे
हिलमिल रतिया-बिहान।
देख के सुनरिया सरुप रे बधरवा के
जात बा सुनर बलिहार।
कतहूं मोरेनवां के चकरी पतइयन से
लहसत अरिया के रूप।
कतहूँ सजल साज बाड़े बिछकनरी के
कहूँ जलकोबिया अनूप।
कहूँ-कहूँ तेनियाँ प बेनिया डुलत बाटे
उझकि-उझकि हर बार।
लह-लह कहूँ सेनुअरवा के लहरेला।
लचकि-लचकि लामी डाल।
ढेंढुकी के सिरवा प चढ़ले मउरवा के
लखि भइल मनवाँ निहाल।
धन रे बधरिया के अँचरा कि जहवाँ से
उमड़ेला कविता के धार।
चढ़ते असढ़वा-सवनवाँ बधरिया में
छाइ गइले अजबे बहार।