भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बूट-खेंसारी के जवानी / बैद्यनाथ पाण्डेय ‘कोमल’

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:01, 6 सितम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बैद्यनाथ पाण्डेय 'कोमल' |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बूँट-खेंसारी के नस-नस में
उमड़ल अल्हड़ जवानी।
फूल खिलल फुनगी में सगरो
मधुमय रस बरसेला,
पीयर-हरियर-नील-लाल के
ठाँव-ठाँव पर मेला,
उमठल मुरझाइल खेतन में
चढ़ल सोनहुला पानी।
बहल हवा पुरवा मद मातल
भरि-भरि सौरभ गागर,
प्यार जगावे चुमि-चुमि फुनगी
तितली सब गुन आगर,
रास मचावे बन पारी से
इक राजा इक रानी।
लहस उठल खेतन में जिनिगी
फिर लहरा लहराइल,
बिहंसत धरती देख-देख के
आसमान मुस्काइल,
बदल गइल हालत पहिले के
आइल नया रवानी।
झूमत बूंट-खेंसारी हिलमिल
रंग गजब के लहरल,
डाल-पात फूलन फुनुगी में
फिर से मस्ती छहरल,
आर करत बा प्यार खेत से
तज के ताना-तानी।
शायद परदेशी के सजनी
चुपके आहट पाके,
झुक-झुक उचकि-उचकि के अपना
साजन के पथ ताके,
ले फूलन के थाल करे फिर
साजन के अगवानी।
बूँट-खेंसारी के नस-नस में
उमड़ल अल्हड़ जवानी।