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देसावर माङता / रघुनाथ शरण शुक्ल 'कुबोध'

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शीशी सगवान तून सँखुआ के बन्द करीं
बनाईं फर्निचर, अब रेंड़-बगरेंड़ के,
खेती के खेतन के परती अब डाल दीहीं
जोत करीं ऊसर के बान्ह अऊर मेड़ के।
धाने के भात खात बीति गइल बहुत साल
देईं तरजीह अब भुस्सा का भात के,
पुरइन का पाता के पत्तल के छोड़ मोह
बैना दीं पत्तके अकवन का पात के
धान-गेहूँ-दलहन के कर दीं नसबन्दी अब
हीक भर पैदा करीं कोदो खेंसारी के,
गायन के लूप दीं, साँढ़न के बधिया करीं
बीमा प्रदान करीं मुर्गिन दुधारी के।
सुग्गा आ बुलबुल के पिंजड़ा से बाहर करीं
बगिया से बाहर करीं कोइलर का तान के,
सोने का पिंजड़ा में उल्लू के पालीं अब
गुलशन के चार्ज दीहीं कौआ महान के।