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सावधान, जन-नायक / बालकृष्ण राव

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सावधान, जन-नायक सावधान।
यह स्तुति का साँप तुम्हे डस न ले।
बचो इन बढ़ी हुई बांहों से
धृतराष्ट्र – मोहपाश
कहीं तुम्हे कस न ले।

सुनते हैं कभी, किसी युग में
पाते ही राम का चरण-स्पर्श
शिला प्राणवती हुई,

देखते हो किन्तु आज
अपने उपास्य के चरणों को छू-छूकर
भक्त उन्हें पत्थर की मूर्ति बना देते हैं।

सावधान, भक्तों की टोली आ रही है
पूजा-द्रव्य लिए!
बचो अर्चना से, फूलमाला से,
अंधी अनुशंसा की हाला से ,
बचो वंदना की वंचना से, आत्म रति से,
बचो आत्मपोषण से, आत्मा की क्षति से।